Madhu varma

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लेखनी कविता - लगे जब चोट सीने में हृदय का भान होता है - बालस्वरूप राही

लगे जब चोट सीने में हृदय का भान होता है / बालस्वरूप राही



लगे जब चोट सीने में हृदय का भान होता है
सहे आघात जो हँसकर वही इंसान होता है ।

लगाकर कल्पना के पर उड़ा करते सभी नभ पर
शिला से शीश टकराकर मुझे अभिमान होता है ।

सुबह औ' शाम आ-आ कर लगाता काल जब चक्कर
धरा दो साँस में क्या है तभी यह ज्ञान होता है ।

विदा की बात सुनकर मैं बहक जाऊँ असंभव है
जिसे रहना सदा वह भी कही मेहमान होता है ।

अँधेरा रात-भर जग कर गढ़ा करता नया दिनकर
सदा ही नाश के हाथो नया निर्माण होता है ।

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